बोर्ड परीक्षा का समय नजदीक आ रहा है, और इस समय छात्रों को शिक्षक की जरूरत होती है ताकि वे अपनी तैयारी में पूरी तरह से सक्षम हो सकें। सवालों के जवाब लिखने से लेकर महत्वपूर्ण सूत्रों को समझने तक, और कमजोर छात्रों की पहचान करके उन्हें अतिरिक्त कक्षाएं देने तक, शिक्षक का योगदान अत्यंत महत्वपूर्ण होता है। लेकिन इस समय स्कूलों में शिक्षकों की कमी हो गई है, जिससे छात्रों की पढ़ाई प्रभावित हो रही है।
इसी दौरान, जब मार्च में 5वीं, 8वीं, 10वीं और 12वीं की बोर्ड परीक्षाएं होनी हैं, शिक्षा विभाग ने 50 से अधिक शिक्षकों को राजिम कुंभ मेले में ड्यूटी पर भेज दिया है। इसके अलावा, 25 से अधिक चपरासियों को भी मेलों के स्टाल में काम पर लगा दिया गया है। इससे स्कूलों में पढ़ाई की स्थिति और खराब हो गई है, और विद्यार्थियों को सही दिशा-निर्देश के लिए स्कूल में शिक्षकों की उपस्थिति की सख्त आवश्यकता है।
राजिम कुंभ के अलावा, प्रदेश में पंचायत चुनाव भी चल रहे हैं, और शिक्षकों को चुनावी ड्यूटी में व्यस्त किया गया है। इस वजह से उन्हें छात्रों को पर्याप्त समय देने का मौका नहीं मिल रहा है। इसका परिणाम यह है कि पाठ्यक्रम भी अधूरा रह गया है।
शिक्षाविदों का कहना है कि वर्तमान में, परीक्षा के समय शिक्षक का चुनावी कार्यों या मेले में ड्यूटी पर लगाना समझ से बाहर है। अगर ड्यूटी लगानी ही थी, तो विभागीय कर्मियों को यह जिम्मेदारी दी जा सकती थी, लेकिन छात्रों के भविष्य से समझौता नहीं किया जाना चाहिए।
अब सवाल यह है कि शिक्षा विभाग को इस स्थिति में क्या कदम उठाने चाहिए? क्या हमें छात्रों के भविष्य के साथ ऐसे खिलवाड़ की अनुमति देनी चाहिए?
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