ऋषि अजय दास ने लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी और ममता कुलकर्णी को महामंडलेश्वर पद से हटाया, विवाद गहराया

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LIvekhabhar | Chhattisgarh News
प्रयागराज: ऋषि अजय दास, जो खुद को किन्नर अखाड़े का संस्थापक बताते हैं, ने हाल ही में एक बड़ा दावा किया है। उन्होंने कहा कि उन्होंने लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी और अभिनेत्री ममता कुलकर्णी को महामंडलेश्वर पद से हटा दिया है। अजय दास का कहना है कि ममता को महामंडलेश्वर बनाने में कोई उचित प्रक्रिया नहीं अपनाई गई थी, और यहां तक कि उन पर देशद्रोह का आरोप भी है। इस वजह से उनका महामंडलेश्वर बनना जायज़ नहीं था।

अजय दास ने ये भी कहा कि ये कोई “बिग बॉस” शो नहीं है, जहां एक महीने के लिए लोगों को कुंभ में शामिल किया जाए। उन्होंने यह स्पष्ट किया कि लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी को किन्नर समाज के उत्थान और सनातन धर्म के प्रचार के लिए आचार्य महामंडलेश्वर के पद पर नियुक्त किया गया था, लेकिन वे रास्ते से भटक गईं। अजय दास ने कहा कि त्रिपाठी ने बिना उनकी अनुमति के 2019 के प्रयागराज कुंभ में जूना अखाड़ा के साथ एक समझौता किया था, जो न केवल अनैतिक था, बल्कि चारसौबीसी भी था।

इस पूरे विवाद पर लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी ने अजय दास के दावों को नकारते हुए उन्हें किन्नर अखाड़े से बाहर कर दिया था। त्रिपाठी ने कहा कि अजय दास को 2017 में किन्नर अखाड़े से निकाल दिया गया था और अब वह निजी स्वार्थ के लिए यह सब कह रहे हैं। त्रिपाठी ने यह भी आरोप लगाया कि अजय दास ने किन्नर समाज और अखाड़े के सिद्धांतों का पालन नहीं किया, और वह अब जो कुछ भी कह रहे हैं, वह सिर्फ उनकी खुद की महत्वाकांक्षाओं का परिणाम है।

इस बीच, अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत रवींद्र पुरी ने अजय दास के दावों को खारिज करते हुए कहा कि वे खुद को कौन समझते हैं? लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी के साथ अखाड़ा परिषद का समर्थन है, और हम उनके खिलाफ किसी भी तरह के कदम को अस्वीकार करते हैं। किन्नर अखाड़े के संस्थापक महंत दुर्गा दास ने भी यह साफ कर दिया कि किसी एक व्यक्ति के कहने से कोई निष्कासित नहीं हो सकता। पूरा किन्नर समाज और साधु-संत लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी के साथ हैं, और वे हमेशा किन्नर अखाड़े के प्रमुख रहेंगे।

यह मामला और भी जटिल होता जा रहा है, क्योंकि ममता कुलकर्णी को 24 जनवरी को किन्नर अखाड़े में महामंडलेश्वर की पदवी दी गई थी। उनका पिंडदान भी हुआ और उन्हें नया नाम “श्रीयामाई ममता नंद गिरि” दिया गया। इसके बाद वे महाकुंभ में सात दिनों तक रही। इस तरह का विवाद किन्नर अखाड़े और उसके नेतृत्व को लेकर अब और गहरा हो गया है, जिससे किन्नर समाज के भीतर ही विवाद और मतभेद उभरने लगे हैं।

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