Mahashivratri Special : छत्तीसगढ़ का अद्भुत प्राकृतिक शिवलिंग, हर साल बढ़ती है ऊंचाई, दर्शन के लिए विदेशों से पहुंचते है लोग

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रायपुर। महाशिवरात्रि के पर्व पर श्रद्धालु बड़ी संख्या में भगवान के शिव के मंदिर पहुंच रहे है। सभी ओर आज शिव के नाम की गूंज है। किवदंतियों में कहा गया है कि कण कण में भगवान बसे हैं। छत्तीसगढ़ के गरियाबंद जिले में भुतेश्वरनाथ शिवलिंग का मंदिर है, यहां दर्शन करने बड़ी संख्या में लोग पहुंचते है।

छत्तीसगढ़ राज्य की राजधानी रायपुर से महज 91 किमी. की दूरी पर स्थित गरियाबंद जिले के एक छोटे से गाँव मरौदा के घने जंगलो के बीच स्थित यह प्राकृतिक शिवलिंग जिसे भूतेश्वर नाथ के नाम से जाना जाता हैं, विश्व का सबसे विशालकाय, प्राकृतिक( स्वयं भू) शिवलिंग है। भूतेश्वर नाथ महादेव के नाम से प्रसिद्ध इस प्रकृति प्रदत्त शिवलिंग की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि हर साल इसका आकार नित-नित बढ़ रहा है। जो कि अपने आप मे यह सिद्ध करता है कि भगवान शिव स्वयं इस पावन धरा पर शिवलिंग के रूप मे विराजमान हैं।

शिवलिंग की यह खासियत भक्तो के लिए तो चमत्कार है, परंतु वैज्ञानिको के लिए शोध का विषय है। इस प्राकृतिक शिवलिंग की ऊचांई लगभग १८ फ़ीट व चौड़ाई(गोलाई)२० फ़ीट है। सरकारी विभाग द्वारा प्रतिवर्ष इस शिवलिंग की जाँच की जाती हैं। उनके अनुसार शिवलिंग प्रतिवर्ष 6 से 8 इंच तक बढ़ रही हैं।
भूतेश्वर नाथ महादेव को भकुर्रा महादेव के नाम से भी जाना जाता हैं। छत्तीसगढ़ की भाषा मे हुँकारना (आवाज़ देना) की ध्वनि को भकुर्रा कहा जाता हैं। इसलिए भूतेश्वर महादेव को भकुर्रा महादेव के नाम से भी पुकारा जाता हैं।

भूतेश्वर नाथ महादेव के पीछे एक और प्रतिमा स्थित है, जिसमे भगवान शिव, माता पार्वती, भगवान गणेश, भगवान कार्तिक, नंदी जी के साथ विराजमान है। इस शिवलिंग मे हल्की सी दरार भी है, इसलिए इसे अर्धनारीश्वर के रूप मे पूजा जाता हैं। इस शिवलिंग का बढ़ता हुआ आकार आज भी शोध का विषय है।

कहा जाता है कि सैकड़ों वर्ष पूर्व जमींदारी प्रथा के समय गरियाबंद के पारागांव निवासी शोभा सिंह जमींदार यहां खेती करते थे। शाम को जब शोभा सिंह अपने खेत में जाती थी तो उसे खेत के पास एक विशेष आकृति से बैल की आवाज, बैल के चीखने की आवाज और शेर के दहाड़ने की आवाज सुनाई देती थी। यह बात उन्होंने ग्रामीणों को बताई। शाम को भी ग्रामीणों ने यही आवाज सुनी। बैल और शेर की तलाशी ली गई, लेकिन कोई जानवर न होने के कारण इस टीले की श्रद्धा और बढ़ गई। लोग इस टीले को शिवलिंग मानने लगे।


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