रायपुर : छत्तीसगढ़ में पहली बार भक्तों के लिए भगवान जगन्नाथ जी के रथ के चक्के की दर्शन यात्रा निकाली जाएगी. खास बात ये है कि इसे पुरी के जगन्नाथ मंदिर से लाकर गायत्री नगर स्थित जगन्नाथ मंदिर में रखा गया है.
आज मीडिया से बातचीत में विधायक पुरन्दर मिश्रा ने जानकारी देते हुए बताया कि कल यानी 11 दिसंबर रविवार को सुबह 10:30 से 11 बजे के बीच रथ को रवाना किया जाएगा. यह रथ शहर के विभिन्न इलाकों में 21 दिनों तक भ्रमण करेगी. इस दौरान भक्त रथ के चक्के का दर्शन कर पुण्य लाभ उठा सकते हैं.
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आगे उन्होंने बताया कि पूरे सनातन हिंदू धर्म में 33 कोटि देवी देवता विराजमान है पर उनमें से प्रभू जगन्नाथ ही एक ऐसे महाप्रभु है जो साल में एक बार मंदिर से निकलकर भक्तों के बीच आते है. और नौ दिनों तक अपने भक्तो के साथ भ्रमण करते हैं. जगन्नाथ जी की रथ यात्रा को लेकर पौराणिक कथाओं में मान्यता है कि जगन्नाथ जी की बहन सुभद्रा जी ने उनसे एक बार द्वारिका दर्शन की इच्छा जाहिर की थी और तब जगन्नाथ जी ने अपनी बहन को रथ में बिठाकर भ्रमण कराया था तब से ही रथ यात्रा की शुरूवात हुई थी।
जगन्नाथ जी के रथ के विषय में :-
जगन्नाथ जी के रथ को नंदीघोष, बलभद्र जी के रथ को तलध्वजा एवं सुमदा जी के रथ को दर्पदलना कहा जाता है।
जगन्नाथ जी के रथ में 16 बलमद जी के रथ में 14 एवं सुमद जी के रथ में 12 पहीये होते है।
> जगन्नाथ जी के रथ को बनाने में 832, बलभद्र जी के रथ को बनाने में 763 एवं सुभदा जी के रथ को बनाने में 553, लकड़ी के तुकड़ों का इस्तेमाल किया जाता है
> जगन्नाथ जी के रथ की उच्चाई 44.02 फीट बलमद जी के रथ की उच्चाई 43.03 फीट एवं सुमदा जी के रथ की उच्चाई 42.03 फीट होती है।
> जगन्नाथ जी के रथ का छत्र लाल/पिला, बलमद जी के रथ का छत्र
लाल/हरा/नीला एवं सुभद्रा जी के रथ का छत्र काला रंग का होता है।
> जगन्नाथ जी के रथ के अभिभावक गरूड, बलमद जी के रथ के अभिभावक वासुदेव एव सुभद्रा जी के रथ के अभिभावक जमदुर्गा होते है।
जगन्नाथ जी के रथ को हर वर्ष नया बनाया जाता है।
> > रथ को बनाने में कभी भी किल या लोहे अथवा किसी भी धातु का इस्तेमाल नही किया जाता है।
रथ को बनाते वक्त लकड़ी काटने के लिए पहला बार सोने की हथौड़ी से लगाया जाता है।
> रथ को खींचने के लिए नारियल के रस्सियों का इस्तेमाल होता है।
> रथ को बनाने में लगभग 2 महीने का समय लगता है इस दौरान रथ को बनाने वाले कारीगर दिन में सिर्फ एक बार ही सादा भोजन ग्रहण करते है।
पुराणों और धार्मिक ग्रंथों में मान्यता है कि जगन्नाथ जी की रथ यात्रा का कल सौ यन्नों के फल के बराबर है. रथ की रस्सी को छुने मात्र से ही पापों का क्षय होता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है यही बजह है कि रथ यात्रा में हर साल देश विदेश से लाखो श्रद्धालु पुरी पहुंचते है।
चारों धामों में से एक सुप्रसिद्ध जगन्नाथ धाम पुरी मंदिर स्थापित महाप्रभु जगन्नाथ जी का इतिहास बहुत ही अदभुत है, माना जाता है कि भगवान विष्णु का हृदय आज भी पुरी के मंदिर में स्थित काष्ठ की प्रतिमाओं में धड़क रहा है। इस मंदिर में स्थापित प्रतिमाओं का इतिहास है पुरी के तातकालीन राजा इन्द्रदुम्न को सपने में एक झलक दिखी थी की समुद्र तट पर एक विशाल काय लकड़ी का तुकड़ा तैर रहा है जिसे वो लाए और उसकी प्रतिमा बना कर उसे मंदिर में स्थापित कर उसकी पूजा करें उत्सतापूर्वक अगली सुबह राजा समुद्र किनारे गये और वहां उन्हें सच में एक महानीम लकड़ी को तुकड़ा मिला जिसे राजा अपने महल ले आए। (लकड़ी के उस तुकड़े को आज ब्रम्ह दारू के नाम से जाना जाता है)
आधी बनी प्रतिमा की कहानी :-
लकड़ी का तुकड़ा तो मिल गया था पर उसे मूर्त रूप देने वाला कोई नही मिल रहा था, राजा ने राज्य के शिल्पकारों को बुलाया और मुर्ति बनाने को कहा पर किसी ने भी उस तुकड़े को विच्छेदित नहीं कर पाया, यह देख कर राजा बहुत उदास हो गया था उसी समय स्वयं विश्वकर्मा भगवान बुद्धे बढ़ाई के रूप में प्रकट हुए और उन्होने लकड़ी से भगवान नीलमाधव की मूर्ति बनाने की बात कही पर उन्होने सत्र रखी की वे 21 दिन में उस मूर्ति को बना देंगे पर इस दौरान वो अकेले ही रहेंगे मूर्ति बनाते वक्त उन्हें कोई देख नहीं सकता, राजा को उनकी यह शर्त माननी पड़ी। कुछ दिन तो कमरे के अंदर से आरी, छीनी और हथौड़ी की आवज आती रही पर बाद में वो आवज बंद हो गयी राजा इंद्रदुम्न और रानी गुंडीचा अपने आपको मूर्ति बनते हुए देखने से रोक नहीं पाये कमरे के अंदर से कोइ भी आवाज न आने पर उन्हें लगा की बुढ़ा बढ़ाई मुख प्यास से मर गया होगा यह सोचकर जिज्ञासा पूर्वक उन्होने दर्वाजा खोलने का आदेश दे दिया जैसे ही कमरा खुला बुढ़ा व्यक्ति गायब था और वहां राजा को अर्ध निर्मित तीन मुर्तियां मिली। जगन्नाथ जी और उनके भाई के छोटे-छोटे दो हाथ बने थे पर पांव नहीं बने थे जबकी बहन सुभद्रा के हाथ और पानी राजा ने इसे ही भगवान की इच्छा मानकर उन्ही अधुरी मूर्तिओं को मंदिर में स्थापित कर दिया तब से लेकर आज तक तीनों भाई बहन इसी रूप में मंदिर में विद्यमान है।