गौरेला पेंड्रा मरवाही : जिले के सबसे विवादित और भ्रष्ट अधिकारी संजीव शुक्ला अवैध वसूली, फर्जी अनापत्ति प्रमाणपत्र,शिक्षको को प्रताड़ित करने जैसे गंभीर आरोपों में दोषी पाए गए है। उक्त सभी मामलों में जिला शिक्षा अधिकारी द्वारा जांच प्रतिवेदन डीपीआई को भेजा जा चुका है। जिसमे शुक्ला लगभग सभी आरोपों में दोषी पाए गए है। कार्यवाही प्रस्तावित होने के बाद भी शुक्ला पर आज तक निलंबन की कार्यवाही नही हो सकी है।
गौरतलब है की पूर्ववर्ती सरकार में अधिकारियों की कृपा से गौरेला विकासखंड शिक्षा अधिकारी जैसे गरिमामय पद पर आसीन संजीव शुक्ला के द्वारा जमकर अवैध वसूली की गई थी। जिसकी शिकायत लगातार स्थानीय जनप्रतिनिधियों, और विभिन्न शिक्षक संघ द्वारा भी की गई थी। जिसमे डीपीआई में कार्यवाही प्रस्तावित होने के बाद भी आज तक कोई कार्यवाही का ना होना इनकी ऊंची पहुंच का प्रमाण है।
सूत्रों के हवाले से BEO संजीव शुक्ला के कार्यालय में पूर्व में अवैध तरीके से अटैच सहायक शिक्षक सुशील द्विवेदी को पुराने जिला शिक्षा अधिकारी द्वारा शिकायत मिलने पर हटा दिया गया था। परंतु आज भी BEO कार्यालय में अघोषित रूप से BEO के लिए वसूली करने की शिकायत मिल रही हैं।
विशेष गुप्त सूत्रों की माने तो गौरेला BEO कार्यालय में परचून की दुकान जैसा सभी कार्यो का रेट निर्धारित है। जैसे मेडिकल अवकाश संवेदनशील कार्य के लिए 1 महीने का ₹10000, पे स्लिप में सिग्नेचर करने का ₹3000, 1 माह का अर्जित अवकाश के लिए ₹10000, मातृत्व और संतान पालन अवकाश के लिए ₹10000, पांच मिनट देरी से पहुंचने पर नोटिस और नोटिस के जवाब के साथ ₹2000, तक लिए जाने की खबरे मिलती हैं तथा विगत वर्ष BEO संजीव शुक्ला द्वारा कई प्रधान पाठको से मोटी रकम लेकर नियम विरुद्ध तरीके से जमकर वसूली करते हुए आदिवासी विकास विभाग के छात्रावास/आश्रमो में अधीक्षकीय कार्य करने के लिए दोनो संस्थाओं में कार्य करने की शर्तो पर अनापत्ति प्रमाण पत्र दिया गया था।
जबकि कइयों की तो उनकी मूल संस्था से 40 किलोमीटर की दूरी पर अधीक्षकीय कार्य करने के लिए अव्यवहारिक तरीके से अनापत्ति प्रमाण पत्र दिया गया हैं। जिस पर प्रमुखता से कार्यवाही करते हुए तत्कालीन जिला शिक्षा अधिकारी द्वारा संजीव शुक्ला को दो बार नोटिस भी जारी किया गया था। जिस पर संतोषप्रद जवाब नही मिलने पर जांच के उपरांत जिला शिक्षा अधिकारी ने BEO संजीव शुक्ला पर कार्यवाही के लिए अपनी अनुशंसा के साथ डीपीआई को पत्र भेजा था। जिस पर आज तक कोई कार्यवाही का ना होना शिक्षा विभाग के अधिकारियों की कार्य शैली पर प्रश्न चिन्ह लगाता है।