Gaurela Pendra Marwahi : जिले में रेत खदानों की स्वीकृति के प्रस्ताव लटके होने से रेत चोरों ने नदियों को बेतहाशा खोद कर रख दिया है। नदियों और किनारों से रेत की लगातार चोरी हो रही है, जेसीबी से खोदा जा रहा है जो अनजानी बात नहीं है। जो मामले पकड़ में नहीं आते उनकी बात छोड़ दें तो जिन मामलों को अवैध खनन,परिवहन और भंडारण करते हुए पकड़ा गया, उन मामलों में भी कठोर कार्रवाई करते हुए संबंधितो के ऊपर एफआईआर दर्ज नहीं कराई जा रही है। जबकि शासन के आदेशों की माने तो अवैध रेत खनन परिवहन और भंडारण करने वालो पर एफआईआर दर्ज की कार्यवाही करनी है, तो फिर खनिज विभाग ऐसे मामलों में आखिर रेत चोरों के लिए इतनी दरियादिली क्यों दिखाई जा रही है?
दोनों हाथ से लुटा रहे खनिज सम्पदा
गौरेला पेंड्रा मरवाही जिले में खनिज विभाग अधिकतर मामलों में हाथ पर हाथ धरे बैठा हुआ है और खुली पड़ी खनिज संपदा को चोरों के द्वारा दोनों हाथों से लुटाया जा रहा है। इसकी आड़ में लाखों रुपए की अवैध कमाई कर ली गई है और सरकार को बड़े पैमाने पर राजस्व का नुकसान उठाना पड़ा है। यदि रेत खदान स्वीकृत हो जाते तो राजस्व की आमदनी सरकार को होती लेकिन खदान भी स्वीकृत नहीं हो रहे और रेत की चोरी भी हो रही और सरकार को राजस्व भी नहीं मिल रहा है तो फिर माईनिंग विभाग का आखिर क्या दायित्व बनता है?
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गौरेला पेंड्रा मरवाही में चोरी की रेत से निजी निर्माण के साथ-साथ सरकारी निर्माण भी हो रहे हैं। क्या संबंधित ठेकेदारों के द्वारा चोरी की रेत के एवज में सरकार को रायल्टी दी जा रही है, क्या विभाग निर्माण कार्य में प्रयुक्त होने वाले रेत के एवज में राजस्व की वसूली कर रहा है,आखिर सरकार को नुकसान पहुंच रहा है। बड़े-बड़े सरकारी भवन, नाली-नाला,सीसी रोड निर्माण बदस्तूर चल रहे हैं लेकिन इनमें लगने वाले रेत को लेकर कोई सुध नहीं ले रहा है। रेत की बढ़ती कीमत के साथ ठेकेदार इसे महंगे दर पर खरीद रहे हैं, तो क्या रेत और निर्माण सामग्री के अनुपात में गुणवत्ता का ख्याल रखा जा रहा है? आखिर निर्माण लागत में इसे मैनेज कैसे किया जा रहा है? या तो गुणवत्ता से समझौता कर या फिर लागत दर बढ़वाकर। सभी सूरतों में नुकसान सरकार का ही है,
सरकारी खजाने पर बड़ी चोट
जबकि राज्य सरकार ने स्पष्ट कहा है कि चोरी के खनिज संसाधनों का निर्माण कार्य में उपयोग ना हो, यह जिला प्रशासन सुनिश्चित करेगा। विकास कार्यों को रोका तो नहीं जा सकता लेकिन चोरी की रेत से हो रहे निर्माण पर भी कोई व्यवस्था नहीं दी गई है। सैकड़ों ट्रैक्टर और टिपर रेत खपाये जा रहे हैं लेकिन आपूर्तिकर्ता के द्वारा सरकारी दर से 4 गुना महंगे दाम पर यह रेत उपलब्ध कराई जा रही है और उस पर भी किसी भी तरह की राशि सरकारी खजाने में नहीं पहुंच रही है। 30 ट्रैक्टर अवैध रेत पकड़ लेने के बाद माईनिंग अमला खामोश बैठा है। नियमों के तहत कार्यवाही की बात तो उसने कह दी लेकिन किस तरह की कार्रवाई हुई,क्या जुर्माना वसूला गया, इसका आज तक अता-पता नहीं है और न ही इसकी जानकारी मीडिया से साझा की गई है।
लाखों कीमत है पकड़े गए रेत की
बाजार दर के अनुसार लगभग लाख की रेत तो जप्त हुई है लेकिन नदियों को मनमाना खोदकर नुकसान पहुंचाने,सरकार को राजस्व का चूना लगाने वाले ऐसे रेत के चोरों, अवैध परिवहनकर्ताओं और भण्डारनकर्ता के विरुद्ध आखिर नामजद एफआईआर दर्ज क्यों नहीं कराई जा रही है?
रेत के जिन ठिकानों पर माइनिंग विभाग ने दबिश दी थी, वह दोनों ठिकाने कहीं न कहीं एक ऐसे जनप्रतिनिधि के इशारे पर चल रहे हैं जो सेटिंग कराने में माहिर है। वह खुद भी चोरी की रेत निकालने और ढोने के काम में संलिप्त है। अब निःसन्देह खनिज अमला मजबूर होकर अपनी प्रशासनिक शक्तियों का उपयोग रेत चोरों पर नहीं कर पा रहा है।
जिले के पिपरीडोल , कोलबिरा, पथर्रा, सिलपहरी, पीपरखुंटी, में खुलेआम अवैध रेत उत्खनन कर मध्यप्रदेश परिवहन किया जा रहा है। जहां दिनदहाड़े और रात में खुलेआम विभागो की मिलीभगत से चोरी धड़ल्ले से हो रही है।
एक सप्ताह पहले पकड़ाए मामले
यह कार्यवाही 15 जनवरी के आसपास खनिज अमले के द्वारा ग्राम पंचायत पथर्रा में की गई थी। जहां लगभग 50 ट्रैक्टर (150 घन मीटर) रेत का अवैध भंडारण किया गया था। परंतु कार्रवाई 25 ट्रैक्टर पर ही हुई है, और जहां लगातार अभी भी रेत का अवैध खनन परिवहन और भंडारण किया जा रहा है, बताना लाजमी है की रेत को हाइवा में बिना रॉयल्टी पर्ची बिना अभिवहन पास के परिवहन किया जाता है, उक्त मामले में हाइवा जब्ती की कार्यवाही होनी चाहिए थी, छग गौण खनिज नियम 2015 के नियम 71 (5) यथा संशोधित छग राज्य पत्र दिनांक 30.06.2020 एमएमडीआर एक्ट 1957 की धारा 21 (4), (5) के तहत कार्यवाही होना था ,परंतु कार्यवाही केवल दस्तावेजों में नजर आता है, धरातल पर नही।