नई दिल्ली। Lalu Prasad Yadav B’day : RJD सुप्रीमो और पूर्व सीएम लालू प्रसाद यादव आज अपना 76 वां जन्मदिन मना रहे है। गोपालगंज के फुलवारिया में लालू का जन्म 11 जून 1948 को हुआ था। उनके पिता कुंदन राय दूध बेचने का काम करते थे और लालू भी बचपन में मां मरिछिया देवी के साथ घर-घर जाकर दूध बांटा करते थे। छात्र राजनीति के बाद 1975 में वह जयप्रकाश नारायण के साथ वह आंदोलन में शामिल हुए जिसके बाद उनकी राजनीतिक करियर की शुरुआत हुई।
पटना में स्थित राबड़ी आवास पर लालू यादव को बधाई देने वालों का तांता लगा हुआ है। इस ख़ुशी के मौके पर लालू का पूरा परिवार पहुंचा हुआ है। मीसा भारती, रोहिणी आचार्य समेत सभी बेटियां जन्मदिन को स्पेशल बनाने के लिए घर पहुंची हुईं है। आज जन्मदिन के मौके पर राबड़ी देवी ने लालू यादव को मिठाई खिलाई और फिर बुके गिफ्ट किया। वहीं बेटियों ने भी लालू यादव को बधाई दी।
इस मौके पर राजद के प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह ने भी लालू यादव को शुभकमानाएं दीं। वहीं जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह भी लालू को बधाई देने राबड़ी आवास पहुंचे। और उन्हें शुभकामनाएं दी। इस मौके पर लालू के समर्थक उनकी लंबी आयु की कामना कर रहे हैं। इससे पहले सीएम नीतीश कुमार ने ट्वीट कर लालू यादव को जन्मदिन की बधाई दी। नीतीश ने ट्वीट कर लिखा लालू प्रसाद यादव जी को जन्मदिन के अवसर पर हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं। आपके स्वस्थ एवं सुदीर्घ जीवन की कामना है।
आगे चलकर लालू पटना यूनिवर्सिटी की स्टूडेंट यूनियन के जनरल सेक्रेटरी बन गए। 1970 में उनका ग्रेजुएशन पूरा हुआ। मगर, इस दौरान लालू स्टुडेंट यूनियन के अध्यक्ष पद का चुनाव हार गए। इसके बाद लालू ने बड़े भैया के दफ्तर में ही (बिहार वेटरनरी कॉलेज) में डेली वेज बेसिस पर चपरासी की नौकरी कर ली। लेकिन, वे इस दौरान भी 3 वर्षों तक छात्र राजनीति में सक्रीय रहे और फिर कानून की पढ़ाई के लिए पटना यूनिवर्सिटी में एडमिशन ले लिया।
1973 में लालू प्रसाद यादव पटना यूनिवर्सिटी की स्टूडेंट यूनियन के अध्यक्ष बन गए। यह वो समय था, जब 1974 में जयप्रकाश नारायण ने संपूर्ण क्रांति आंदोलन का ऐलान कर दिया था। लालू के लिए यह समय उनके जीवन का टर्निंग पॉइंट साबित हुआ और लालू आंदोलन में शामिल हो गए। छात्र राजनीति में पकड़ रखने वाले लालू जल्द ही जेपी के चहेते बन गए।
भारत में सबसे युवा संसद बनने वाले
महज 29 वर्ष की आयु में संसद पहुंचने वाले लालू उस समय तक भारत के सबसे युवा सांसद थे। उधर जनता पार्टी में भी उनका कद बढ़ता रहा। जेपी ने लालू को स्टूडेंट्स एक्शन कमेटी का सदस्य बनाया। इसी कमेटी को बिहार विधानसभा चुनाव के लिए टिकट निर्धारित करने थे। बताया जाता है कि, इसके बाद बड़े-बड़े नेता टिकट के लिए पटना वेटरनरी कॉलेज के सर्वेंट क्वॉर्टर के बाहर खड़े रहते थे।
हालांकि, उस समय जनता पार्टी की आंतिरक मतभेद के चलते सरकार गिर गई और 1980 में फिर चुनाव हुए। मगर, इस बार लालू हार गए। लेकिन, लालू हार नहीं माने और उन्होंने उसी साल विधानसभा चुनाव में सोनपुर से लोक दल के टिकट पर चुनाव लड़ा और जीत गए। 1985 में लालू ने एक बार फिर विधानसभा का चुनाव जीता।
इसके बाद फ़रवरी 1988 में बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर का निधन हो गया। तब काफी जद्दोजहद के बाद लालू प्रसाद को विपक्ष का नेता बना दिया गया। 1990 के चुनाव में जनता दल ने सत्ता में वापसी कर ली और CPI के साथ सरकार के गठन करने योग्य सीटें भी जुटा लीं। तब तक, CM किसे बनाया जाए ये सवाल खड़ा हो गया। केंद्र में जनता दल के प्रधानमंत्री वीपी सिंह, राम सुंदर दास को सीएम बनाना चाहते थे। उस समय, वीपी की सरकार में उपप्रधानमंत्री थे ताऊ देवी लाल और उनका कहना था कि लालू को बिहार का मुख्यमंत्री बनाया जाए।
1997 में चारा घोटाले में फंसने के कारण लालू को सीएम की कुर्सी छोड़नी पड़ी। इस दौरान लालू ने अपनी पत्नी राबड़ी देवी को सत्ता सौंपकर राष्ट्रीय जनता दल के अध्यक्ष का पद संभाल लिया और अपरोक्ष रूप से सत्ता की बागडौर अपने ही हाथ में रखी। चारा घोटाला मामले में लालू यादव को कई महीने तक जेल भी जाना पड़ा।
17 साल के करीब चले इस ऐतिहासिक केस में CBI की स्पेशल कोर्ट के जज प्रवास कुमार सिंह ने लालू को वीडियो कान्फ्रेन्सिंग के माध्यम से 3 अक्टूबर 2013 को पाँच साल की कैद व पच्चीस लाख रुपये के जुर्माने की सजा सुनाई।
लालू प्रसाद की मुश्किलें अभी भी काम नहीं हुई है। नौकरी के बदले जमीन मामले में फंसे हुए हैं, जो उनके केंद्र की मनमोहन सरकार में रेल मंत्री रहने के दौरान का है। आरोप है कि, लालू यादव ने लोगों को अवैध रूप से रेलवे में नौकरियां दी और बदले में उनसे अपने परिवार के नाम पर करोड़ों की जमीनें लिखवा ली। यानी, चपरासी की नौकरी से शुरू हुआ लालू का सफर शोहरत की बुलंदियों को छूते हुए भ्रष्टाचार के दलदल तक आ पहुंचा है।