कर्नाटक। शादी के बाद पति की ओर से शारीरिक संबंध बनाने से मना करने को आईपीसी की धारा 498ए के तहत अपराध क्रूरता नहीं होती है। यह टिप्पणी कर्नाटक हाईकोर्ट ने अपने एक हालिया फैसले में दी। कोर्ट ने कहा कि हिंदू मैरिज एक्ट-1995 के तहत ये क्रूरता है। इसी के साथ हाईकोर्ट ने पति और उसके माता-पिता के खिलाफ पत्नी की ओर से 2020 में दायर किए गए एक आपराधिक मामले को खारिज कर दिया।
पति ने दहेज प्रतिषेध अधिनियम, 1961 की धारा 4 और आईपीसी की धारा 498ए के तहत खुद और अपने परिवार के खिलाफ दायर की गई चार्जशीट को कर्नाटक हाईकोर्ट में चुनौती दी थी। जस्टिस एम नागप्रसन्ना ने माना कि याचिकाकर्ता के खिलाफ केवल ये आरोप है कि वो किसी आध्यात्मिक विचार को मानने वाला है और मानता है कि प्यार कभी शारीरिक संबंध पर नहीं होता, ये आत्मा से आत्मा का मिलन होना चाहिए।
जस्टिस एम नागप्रसन्ना ने कहा, ”वह (पति) कभी भी अपनी पत्नी के साथ शारीरिक संबंध बनाने का इरादा नहीं रखता था। जो निश्चित तौर पर हिंदू मैरिज एक्ट की धारा 12(1) के तहत क्रूरता में आता है, लेकिन ये आईपीसी की धारा 498ए के तहत परिभाषित क्रूरता नहीं है।” इसके साथ ही उन्होंने कहा कि शिकायत और चार्जशीट में ऐसी कोई भी घटना या तथ्य नहीं हैं, जो इसे आईपीसी की धारा के तहत क्रूरता साबित करे। उन्होंने ये भी कहा कि तलाक के लिए फैमिली कोर्ट ने शारीरिक संबंध न बनाने को क्रूरता माना। इसी आधार पर आपराधिक कार्यवाही जारी रखने की अनुमति उत्पीड़न में बदल जाएगी और इससे कानून का दुरुपयोग होगा।
क्या था मामला?
इस जोड़े की शादी 18 दिसंबर 2019 को हुई थी, लेकिन शादी के 28 दिनों बाद ही पत्नी ने अपना ससुराल छोड़ दिया था। पत्नी की ओर से 5 फरवरी 2020 में आईपीसी की धारा 498ए और दहेज प्रतिषेध अधिनियम के तहत मुकदमा दर्ज करवाया था। इसके साथ ही उसने हिंदू मैरिज एक्ट के तहत शादी को रद्द करने की मांग करते हुए एक केस दर्ज कराया था। 16 नवंबर 2022 को दोनों के बीच तलाक हो गया था।