Ram Prasad Bismil : काकोरी कांड के महानायक राम प्रसाद बिस्मिल की कहानी, हथियार के लिए बेची किताब, फांसी से पहले कहा था – ‘मैं ब्रिटिश साम्राज्य का विनाश चाहता हूं’

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नई दिल्ली। Ram Prasad Bismil : भारत की स्वतंत्रता की लड़ाई में कई महान क्रांतिकारियों ने अपना अहम योगदान दिया। जिसमें राम प्रसाद बिस्मिल का भी नाम शामिल है। वे क्रांतिकारी के साथ शायर, कवी और एक लेखक भी थे। सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है, जैसी उनकी कई पंक्तियों को लोग आज भी याद करते है। हालांकि इसकी असली रचयिता रामप्रसाद बिस्मिल नहीं बल्कि बिस्मिल अज़ीमाबादी हैं।

उत्तरप्रदेश के शाहजहांपुर में 11 जून 1897 को रामप्रसाद बिस्मिल का जन्म हुआ था। उनकी माता का नाम मूलारानी था। उनके पिता मुरलीधर शाहजहांपुर नगरपालिका में कर्मचारी थे। उनका बचपन सामान्य गुजरा। बचपन में राम पढ़ाई का नाता ख़ास नहीं था और उन्हें खेलना ज्यादा भाता था। जिसके चलते राम को उनके पिता से मार भी पड़ती थी। उनकी पढ़ाई हिंदी और उर्दू दोनों में ही हुई।

काकोरी कांड

भारत की आजादी की लड़ाई में काकोरी कांड एक महत्वपूर्ण घटना रही। महात्मा गांधी द्वारा साल 1922 में असहयोग आंदोलन अपने चरम पर था, इस बीच में गोरखपुर जिले के चौरा चोरी में एक घटना हुई। आक्रोशित आंदोलनकारियों ने एक पुलिस स्टेशन का घेराव कर आग के हवाले कर दिया। इस घटना में 22 से 23 पुलिसकर्मी जलकर मर गए थे। इस घटना से दुखी होकर माहत्मा गांधी ने तुरंत ही असहयोग आंदोलन को वापस ले लिया था।

महात्मा गांधी के इस फैसले से देशभर में निराशा का माहौल बन गया था। घटना के लगभग 3 साल के बाद यानी 1925 को क्रांतिकारियों ने काकोरी में एक ट्रेन में डकैती दाल थी। जिसे बाद में काकोरी कांड का नाम दिया गया। काकोरी कांड का मकसद अंग्रेजी सरकार का खजाना लूटकर उन पैसों से हथियार खरीदना था ताकि अंग्रेजों के खिलाफ युद्ध को मजबूती मिल सके। काकोरी ट्रेन डकैती में खजाना लूटने वाले क्रांतिकारी ‘हिंदुस्तान रिपब्लिक एसोसिएशन’ (एचआरए) के सदस्य थे।

साहरण-पुर लखनऊ पैसेंजर ट्रेन को 9 अगस्त 1925 की रात 2 बजकर 42 मिनट पर कुछ क्रांतिकारियों ने रोक कर लूट लिया। रामप्रसाद बिस्मिल इस काकोरी कांड का नेतृत्व कर रहे थे। वहीं दूसरी ओर अंग्रेज सरकार इससे ना खुश हुई और बड़ी संख्या में गिरफ्तारी करने लगी।

जिसके बाद सभी पर 10 महीने के करीब लखनऊ की अदालत में मुकदमा चलता रहा। कोर्ट ने रामप्रसाद ‘बिस्मिल’, राजेंद्रनाथ लाहिड़ी, रोशन सिंह और अशफाक उल्ला खां को फांसी की सजा सुनाई गई।

विश्वानिदेव सवितुर्दुरितानि : रामप्रसाद बिस्मिल

Ram Prasad Bismil : सबसे पहले गांडा जेल में 17 दिसंबर 1927 को राजेंद्रनाथ लाहिड़ी (Rajendra Lahiri) को फांसी दी गई। उनके अंतिम शब्द थे-” हमारी मृत्यु व्यर्थ नहीं जाएगी”।

दो दिन बाद 19 दिसंबर 1927 को पं. रामप्रसाद बिस्मिल (Ram Prasad Bismil) को गोरखपुर जेल में फांसी दी गई और उनके अंतिम शब्द थे- ” ‘मैं ब्रिटिश साम्राज्य का विनाश चाहता हूं, विश्वानिदेव सवितुर्दुरितानि।’

इस कांड में शामील तीसरे शहीद ठाकुर रोशन सिंह (Roshan Singh) को इलाहाबाद में फांसी दी गई। उन्होंने अपने मित्र को पत्र लिखते हुए कहा था, ‘हमारे शास्त्रों में लिखा है, जो आदमी धर्मयुद्ध में प्राण देता है, उसकी वही गति होती है जो जंगल में रहकर तपस्या करने वालों की।’

काकोरी कांड के चौथे शहीद अशफाक उल्ला खां (Ashfaqulla Khan) थे। उन्हें फैजाबाद में फांसी दी गई। वे बहुत खुशी के साथ कुरान शरीफ का बस्ता कंधे पर लटकाए और कलमा पढ़ते हुए फांसी के तख्ते के पास गए।

हथियार के लिए बेची किताब

रामप्रसाद बिस्मिल अपने समय में कई सारी प्रतिभा को अपने भीतर समाए हुए थे। उन्होंने कुल 11 पुस्तकें लिखी। वे इन पुस्तकों को स्टॉल लगाकर खुद भी बेचते थे। उनकी पुस्तकों में स्वाधीनता का अंश होता था। जिसके चलते लोग उनकी पुस्तकों को काफी ज्यादा पसंद करते थे।

बहुत कम ही लोग जानते होंगे कि उन्होंने क्रांतिकारी बनने के बाद पहला तमंचा अपनी किताब की बिक्री से मिली राशि से ही खरीदा था। बिस्मिल के जीवन को नई पीढ़ी तक ले जाने की कोशिशों में जुटे गुरुकृपा संस्थान के बृजेश त्रिपाठी कहते हैं, बिस्मिल एक रचनाकार, कवि और साहित्यकार भी थे।

 

रामप्रसाद बिस्मिल की जयंती पर दी गई श्रद्धांजलि

 


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