RBI MPC: भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के नए गवर्नर संजय मल्होत्रा ने पहली बार मौद्रिक नीति समिति (MPC) की बैठक के बाद लिए गए फैसलों की घोषणा की। उन्होंने 2025-26 के लिए भारत की जीडीपी वृद्धि दर 6.7% रहने का अनुमान जताया, जो मौजूदा वित्त वर्ष (2024-25) के अनुमानित 6.4% से अधिक है। इसके साथ ही, खाद्य मुद्रास्फीति में नरमी की उम्मीद के चलते खुदरा महंगाई दर 4.2% रहने की संभावना जताई गई है।
भारतीय अर्थव्यवस्था की विकास दर 7% से ज्यादा हो सकती है!
प्रेस वार्ता के दौरान जब पूछा गया कि क्या भारतीय अर्थव्यवस्था और तेज़ी से बढ़ सकती है, तो गवर्नर संजय मल्होत्रा ने आत्मविश्वास के साथ कहा कि भारत निश्चित रूप से 7% या उससे अधिक की विकास दर हासिल कर सकता है और हमें इसकी आकांक्षा रखनी चाहिए। उनके अनुसार, रबी फसल के अच्छे उत्पादन, औद्योगिक गतिविधियों में सुधार और केंद्रीय बजट 2025-26 में दी गई कर राहत से घरेलू खपत को बढ़ावा मिलेगा, जिससे आर्थिक विकास को मजबूती मिलेगी।
महंगाई को लेकर क्या कहा RBI गवर्नर ने?
संजय मल्होत्रा ने मुद्रास्फीति पर संतुलित दृष्टिकोण पेश किया। उन्होंने कहा कि खरीफ और रबी फसलों के बेहतर उत्पादन और खाद्य वस्तुओं के दाम में नरमी से खुदरा महंगाई काबू में रहेगी। हालांकि, ऊर्जा कीमतों में उतार-चढ़ाव और वैश्विक वित्तीय बाजारों की अनिश्चितता के कारण कुछ जोखिम बने रह सकते हैं। 2025-26 में सीपीआई मुद्रास्फीति 4.2% पर रहने का अनुमान है।
बजट 2025-26: आयकर छूट से महंगाई नहीं बढ़ेगी
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा बजट में मध्यम वर्ग को बड़ी आयकर छूट दिए जाने पर गवर्नर ने कहा कि इससे मुद्रास्फीति पर कोई असर नहीं पड़ेगा, बल्कि आर्थिक विकास को मजबूती मिलेगी। उन्होंने यह भी बताया कि पूंजीगत व्यय में बढ़ोतरी से निवेश को प्रोत्साहन मिलेगा और इससे अर्थव्यवस्था को लंबी अवधि में लाभ होगा।
अर्थव्यवस्था के लिए आशावादी दृष्टिकोण
आरबीआई की भविष्यवाणी के अनुसार, अगले वित्त वर्ष में पहली तिमाही में 6.7%, दूसरी तिमाही में 7.0% और तीसरी व चौथी तिमाही में 6.5% की दर से वृद्धि होने की संभावना है। संसद में पेश आर्थिक समीक्षा में भी भारत की विकास दर 6.3-6.8% के बीच रहने की संभावना जताई गई है, जो वैश्विक चुनौतियों के बावजूद अर्थव्यवस्था की मजबूती को दर्शाता है।
भारतीय रिजर्व बैंक की ताजा घोषणाएं बताती हैं कि अर्थव्यवस्था स्थिर गति से आगे बढ़ रही है, निवेश और उपभोग को बढ़ावा मिल रहा है और महंगाई नियंत्रण में रहने की उम्मीद है। हालांकि, वैश्विक वित्तीय बाजारों और जलवायु कारकों से जुड़े जोखिमों पर लगातार नजर बनाए रखने की जरूरत होगी।
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