लखनऊ। उत्तरप्रदेश में सीवेज की गंदगी गंगा नदी में गिरने के कारण पानी की गुणवक्ता बेहद खराब हो रही है। स्थिति इतनी खराब है कि प्रयागराज में गंगा नदी का जल याचमन लायक भी नहीं है। एनजीटी ने बताया कि यूपी में रोजाना गंगा और उसकी सहायक नदियों में लाखों लीटर गंदा पानी गिर रहा है।
इसके रोकथाम और नियंत्रत के लिए एनजीटी यानी राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण ने यूपी समेत अन्य राज्यों से अनुपालन रिपोर्ट मांगी थी। एनजीटी ने चार सप्ताह के अंदर यूपी के मुख्य सचिव से चुनौती से निपटने और जल को दूषित होने से रोकने के फौरी उपायों के साथ हलफनामा देने को कहा है। मामले में सुनवाई 20 जनवरी तय की गई है।
एनजीटी अध्यक्ष न्यायमूर्ति प्रकाश श्रीवास्तव की पीठ ने छह नवंबर को अपने आदेश में कहा कि उत्तर प्रदेश से मिली रिपोर्ट के अनुसार प्रयागराज जिले में सीवेज की गंदगी के शोधन में 128 मिलियन लीटर प्रतिदिन (एमएलडी) का अंतर है। पीठ ने कहा कि इसके अलावा, 25 अप्रयुक्त नालों से जिले में गंगा नदी में अशोधित मलजल गिरता है, तथा 15 अप्रयुक्त नालों से यमुना नदी में मलजल गिरता है। पीठ में न्यायिक सदस्य न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल और विशेषज्ञ सदस्य ए सेंथिल वेल भी शामिल हैं।
एनजीटी ने कहा, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) की 22 अक्तूबर की रिपोर्ट में बताए गए यूपी के 326 नालों में से 247 नालों के पानी का शोधन नहीं किया गया है। इन खुले नालों से 3,513.16 एमएलडी अपशिष्ट पानी गंगा और उसकी सहायक नदियों में गिर रहा है। स्थिति पर असंतोष जताते हुए अधिकरण ने राज्य के मुख्य सचिव को हलफनामे में विभिन्न जिलों में हर नाले और उनसे उत्पन्न होने वाले सीवेज और प्रस्तावित सीवेज उपचार संयंत्रों (एसटीपी) के बारे में विस्तृत जानकारी तलब की है।
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने कहा, “केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) की 22 अक्टूबर की रिपोर्ट में बताए गए 326 नालों में से 247 नाले अप्रयुक्त हैं (और वे 3,513.16 एमएलडी गंदा पानी गंगा और उसकी सहायक नदियों में बहा रहे हैं।”
असंतोष व्यक्त करते हुए, इसने राज्य के मुख्य सचिव को हलफनामा दायर करने का निर्देश दिया, जिसमें विभिन्न जिलों में प्रत्येक नाले, उनसे उत्पन्न सीवेज, सीवेज उपचार संयंत्र (एसटीपी) जिनसे उन्हें जोड़ने का प्रस्ताव है और एसटीपी को चालू करने की समयसीमा के बारे में जानकारी दी गई हो।
गंगा नदी के पानी में मिला फीकल कोलीफॉर्म
एनजीटी ने सीपीसीबी की रिपोर्ट के हवाले से कहा, उत्तर प्रदेश में 41 स्थानों पर पानी की गुणवत्ता की निगरानी से स्पष्ट रूप से पता चलता है कि फीकल कोलीफॉर्म (एफसी) बैक्टीरिया 16 स्थानों पर 500/100 मिलीलीटर की सबसे संभावित संख्या (एमपीएन) से अधिक है। इसके अलावा, 17 स्थानों पर 2,500 एमपीएन/100 मिलीलीटर से अधिक है। सीपीसीबी के अनुसार, फीकल (मल) कोलीफॉर्म का मानक स्तर एमपीएन 500/100 मिलीलीटर है। फीकल कोलीफॉर्म एक तरह का बैक्टीरिया है, जो भोजन की गुणवत्ता को खराब करता है और मनुष्यों के साथ जानवरों में भी कई बीमारी का कारण बनता है।
वही नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट को क्रियाशील करने की डेडलाइन की जानकारी मांगी है। हलफनामे में ये बताना होगा कि एसटीपी का पूरी तरह संचालन शुरु होने तक सभी जिले के नदी में सिवेज की गंदगी गिरने से रोकने के लिए किस तरह के अल्पकालिक उपाय लागू किए जायेंगे।
35 से में एक एसपीटी में नियमों का पालन
सीपीसीबी की एक रिपोर्ट पर भी एनजीटी ने गौर किया। इस रिपोर्ट में गंगा किनारे बसे 16 शहरों में 41 सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट की जानकारी दी गई है। जिसमें 6 प्लांट काम नहीं कर रहे है। वहीं 35 एसटीपी चालू है। लेकिन एक ही में नियमों का सही अनुपालन किया गया है।
ट्रिब्यूनल ने कहा, ऐसे में साफ जाहिर है कि गंगा में सीवेज छोड़े जाने के कारण जल की गुणवत्ता खराब हो रही है। साथ ही, उसने यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया कि सभी संयंत्र निर्दिष्ट मानदंडों का अनुपालन करें।