रायपुर। आज से शारदीय नवरात्री की शुरुआत हो रही हैं। यह भारतीय संस्कृति और परंपरा का एक महत्वपूर्ण पर्व है। नवरात्री नौ रातों का उत्सव है, जो माँ दुर्गा की आराधना के लिए समर्पित है। नवरात्री में 9 दिनों तक देवी दुर्गा के विभिन्न रूपों की पूजा की जाती है। इस पर्व की शुरुआत अश्विन मास की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से होती है। इस दौरान भक्तजन उपवास रखते हैं, माता की आरती करते हैं, और गरबा तथा डांडिया जैसे पारंपरिक नृत्य करते हैं।
हर दिन अगल-अलग स्वरुप की होती है पूजा
पहले दिन माँ शैलपुत्री, दूसरे दिन माँ ब्रह्मचारिणी, तीसरे दिन माँ चंद्रघंटा, चौथे दिन माँ कूष्मांडा, पाँचवे दिन माँ स्कंदमाता, छठे दिन माँ कात्यायनी, सातवें दिन माँ कालरात्रि, आठवें दिन माँ महागौरी और नवें दिन माँ सिद्धिदात्री की पूजा की जाती है।
आज मां शैलपुत्री स्वरुप की होगी पूजा
पहले दिन मां शैलपुत्री की विधिवत पूजा की जाती है। वे हिमालय की पुत्री मानी जाती हैं और उनका वाहन गाय है। पूजा विधि में सबसे पहले भक्त स्नान कर शुद्ध वस्त्र धारण करते हैं। एक चौकी पर गंगाजल छिड़ककर शुद्ध किया जाता है और मां दुर्गा की प्रतिमा या तस्वीर स्थापित की जाती है। इसके बाद धूप, दीप और घी का दीपक जलाकर मां को खीर या दूध से बनी मिठाई का भोग अर्पित किया जाता है।
पूजा के शुभ मुहूर्त
ब्रह्म मुहूर्त: 04:37 AM – 05:26 AM
प्रातः संध्या: 05:01 AM – 06:14 AM
अमृत काल: 08:45 AM – 10:33 AM
अभिजीत मुहूर्त: 11:45 AM – 12:33 PM
विजय मुहूर्त: 02:07 PM – 02:54 PM
मां शैलपुत्री को भोग और प्रिय रंग
मां शैलपुत्री को गाय के दूध से बनी खीर या मिठाइयों का भोग लगाना अत्यंत शुभ माना गया है। इसके साथ ही, मां को लाल रंग अतिप्रिय है, इसलिए पूजा में लाल रंग के वस्त्र और फूलों का प्रयोग किया जा सकता है।
मां शैलपुत्री की कथा
मां शैलपुत्री का जन्म हिमालय के घर हुआ, इसलिए उन्हें शैलपुत्री कहा जाता है। पूर्व जन्म में वे सती थीं, जिन्होंने अपने पिता दक्ष के यज्ञ में अपमानित होकर आत्मदाह कर लिया था। अगले जन्म में वे हिमालय की पुत्री के रूप में जन्मीं और मां शैलपुत्री के रूप में प्रतिष्ठित हुईं।