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भक्तों के लिए खुले केदारनाथ धाम के कपाट, जानिए केदारनाथ धाम का महाभारत से क्या है कनेक्शन, शिव जी कैसे हुए थे विराजमान?

May 11, 2024 | by Nitesh Sharma

kedarnath mahabharat connection

LIvekhabhar | Chhattisgarh News

रायपुर। केदारनाथ धाम, भारतीय सांस्कृतिक और धार्मिक विरासत का एक महत्वपूर्ण स्थल है जो हिमालय की गोद में स्थित है। केदारनाथ धाम एक स्थान है जहां धार्मिक और ऐतिहासिक परंपराओं का अद्वितीय संगम है। यहां के धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व के साथ-साथ, प्राकृतिक सौंदर्य और अनुभव भी अद्वितीय है। इसे भारतीय सांस्कृतिक विरासत का महत्वपूर्ण हिस्सा माना जाता है और धार्मिक यात्रा का एक प्रमुख स्थल है।

भक्तों के लिए खुले कपाट
अक्षय तृतीया के मौके पर केदारनाथ धाम के कपाट खुलते ही चारधाम यात्रा प्रारंभ हो गई है। छह महीने के शीतकालीन अवकाश के बाद श्री केदारनाथ धाम के कपाट आज सुबह 7 बजे वैदिक मंत्रोच्चार और विधि विधान के साथ आम श्रद्धालुओं के लिए खोल दिए गए हैं।

महाभारत से क्या है कनेक्शन?
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार केदारनाथ के साथ महाभारत के युद्ध का एक महत्वपूर्ण कनेक्शन मिलता है। महाभारत में, केदारनाथ को महाराज पाण्डु के पुत्र भीम के द्वारा बनाया गया माना जाता है।

कथाओं के अनुसार, भीम ने अपने भाईयों के साथ लड़ाई के बाद श्रीकृष्ण के संदेश के अनुसार यहां पर शिव भगवान के लिए जगह बनाई। इसे ‘केदार’ नाम दिया गया, जिसका अर्थ है ‘भगवान की मन्नत’। इस पावन स्थल पर स्थित केदारनाथ मंदिर हर साल लाखों श्रद्धालुओं को आकर्षित करता है।

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भगवान शिव धारण किया भैंसे का रूप
जब पांडव भी केदार पर्वत पहुंच गए तब उन्हें देख भगवान शिव ने एक भैंसे का रूप धारण कर लिया और पशुओं के बीच में चले गए. भगवान शिव के दर्शन पाने के लिए पांडवों ने एक योजना बनाई. जिसके बाद भीम ने विशाल रूप धारण कर अपने दोनों पैर केदार पर्वत के दोनों और फैला दिए. सभी पशु भीम के पैरों के बीच से गुजर गए, लेकिन भैंसे के रूप में भगवान शिव ने जैसे ही पैरों के नीचे से निकलने की कोशिश की तभी भीम ने उन्हें पहचान लिया।

भगवान शिव को पहचान कर भीम ने भैंसे को पकड़ना चाहा तो वह धरती में समाने लगा। तब भीम ने भैंसे का पिछला भाग कस कर पकड़ लिया। भगवान शिव पांडवों की भक्ति से प्रसन्न हुए और उन्हें दर्शन देकर पाप से मुक्त कर दिया। कहा जाता है कि तभी से भगवान शिव को यहां भैंसे की पीठ की आकृति के रूप में पूजे जाते हैं। मान्यता है कि इस भैंसे का मुख नेपाल में निकला, जहां भगवान शिव की पूजा पशुपतिनाथ के रूप में की जाती है।

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